1 . शवासन

इस आसन में शरीर की स्थिति मुर्दे के समान होती है । अंग - अंग ढीला छोड़कर शरीर और मस्तिष्क को इसमें पूर्णतः विश्राम की स्थिति में लाया जाता है ।




प्रायोगिक विधि - भूमि पर दरी या कम्बल बिछा कर पीठ के बल चित्त लेट जाइए । दोनों पैर फैले हुए हों और उनमें एक फीट की दूरी हो । पैर ढीला छोड़ने पर जिधर लुढ़कते हैं , लुढ़कने दीजिए । बाहों को दोनों बगल में शरीर से थोड़ा हटाकर फैलाएँ और हाथों को ढीला छोड़ दें । हथेली ऊपर की  ओर हों और उँगलियाँ ढीली छोड़ने पर जैसे रहें , वैसे ही रहने दीजिए । इसके वाद स्वाभाविक गति से साँस लेते रहिए , आँखें बन्द करके ढीली छोड़ दें ।

 शवासन में ध्यान - शवासन की अवस्था में मस्तिष्क के विचारों को - शान्त करने का प्रयत्न करें । किसी प्रफुल्लित करने वाली वस्तु पर चेतना को एकाग्रचित करें जिसमें काम सम्बन्धी कोई भाव नहीं हो । इस आसन में ' ध्यान ' लगाने से एक समय ऐसा आयेगा , जब शरीर हल्का - फुल्का लगेगा और चेतना उन्मुक्त सी लगेगी ।

 लाभ - यह शरीर को पूर्णतया विश्राम प्रदान करता है । इससे थकावट दूर होती है । मानसिक तनाव दूर होता है । मन - मस्तिष्क हल्का एवं प्रफुल्लित होता है ।

सावधानी 
1 . शवासन में ध्यान लगाते समय शरीर और मस्तिष्क पर कोई भी दबाव न डालें । ' ध्यान ' में भी स्वाभाविक रूप से एकाग्रचित्तता को प्राप्त करने का प्रयत्न करें ।
2 . उत्तर दिशा की ओर सिर करके श्वासन न लगाएँ । अच्छा हो कि सिर पूरब दिशा में रखें ।
3 . शवासन करवट लेटकर भी किया जा सकता है , लेकिन सबसे लाभप्रद चित्त लेटना ही है ।