चन्द्रमा शुक्लपक्ष में सात या आठ दिन व्यतीत हो जाने के बाद जिस रूप में दिखाई देता है , उस रूप में शरीर की मुद्रा बनाकर आसन लगाने को अर्द्धचन्द्रासन कहते हैं ।
प्रायोगिक विधि - सीधे खड़े होकर दोनों ऐडियों को मिलाएँ । पंजों को 45° का कोण बनाकर रखें । दोनों बाहों को ऊपर उठाएँ। हथेलियों को प्रणाम की मुद्रा में मिलाएँ ।
गहरी साँस लें और हाथों को ऊपर ताने हुए बाई ओर झुकाएँ । साँस छोड़ते हुए पूर्व की स्थिति में आएँ । पुनः साँस लें और पहले की भाँति दाईं ओर झुके।
ध्यान मणिपुर चक्र पर स्थापित करें। यह व्यायाम आप जब तक बिना अधिक थके कर सकते हैं , करें।
अर्द्धचन्द्रासन में ध्यान - यह मुख्यतः शारीरिक व्यायाम है । वैसे इसमें मणिपुर चक्र पर ध्यान केन्द्रित करने से अधिक लाभ होता है ।
लाभ - तिल्ली , जिगर , बड़ी औत , रीढ़ एवं कमर के जोड़ की हड़ी को स्वस्थ करता है । कमर , मेरुदंड , बाँह , पीठ आदि का भी यह एक उत्तम व्यायाम है । इससे शरीर की पेशियाँ , स्नायू आदि लचीले होते हैं। महिलाओं के लिए यह व्यायाम कल्पतरु है।
सावधानियाँ-
1 , उत्तर दिशा की ओर मुँह करके आसन न लगाएँ ।
2 . पैरों एवं बाहों को ताने रखें ।
3 . प्रारम्भ में आप अधिक नहीं झुक सकते । इसका अभ्यास धीरे - धीरे करें ।
प्रायोगिक विधि - सीधे खड़े होकर दोनों ऐडियों को मिलाएँ । पंजों को 45° का कोण बनाकर रखें । दोनों बाहों को ऊपर उठाएँ। हथेलियों को प्रणाम की मुद्रा में मिलाएँ ।
गहरी साँस लें और हाथों को ऊपर ताने हुए बाई ओर झुकाएँ । साँस छोड़ते हुए पूर्व की स्थिति में आएँ । पुनः साँस लें और पहले की भाँति दाईं ओर झुके।
ध्यान मणिपुर चक्र पर स्थापित करें। यह व्यायाम आप जब तक बिना अधिक थके कर सकते हैं , करें।
अर्द्धचन्द्रासन में ध्यान - यह मुख्यतः शारीरिक व्यायाम है । वैसे इसमें मणिपुर चक्र पर ध्यान केन्द्रित करने से अधिक लाभ होता है ।
लाभ - तिल्ली , जिगर , बड़ी औत , रीढ़ एवं कमर के जोड़ की हड़ी को स्वस्थ करता है । कमर , मेरुदंड , बाँह , पीठ आदि का भी यह एक उत्तम व्यायाम है । इससे शरीर की पेशियाँ , स्नायू आदि लचीले होते हैं। महिलाओं के लिए यह व्यायाम कल्पतरु है।
सावधानियाँ-
1 , उत्तर दिशा की ओर मुँह करके आसन न लगाएँ ।
2 . पैरों एवं बाहों को ताने रखें ।
3 . प्रारम्भ में आप अधिक नहीं झुक सकते । इसका अभ्यास धीरे - धीरे करें ।