शरीर को ऐड़ियों के सहारे धरती से 45 ' का कोण बनाते हुए सर एवं कंधों को बाजुओं की सहायता से ऊपर ताने रहने के कारण इस आसन को कोणासन कहते हैं ।
प्रायोगिक विधि – बाजुओं को पीछे की ओर मोड़कर ऐड़ियों को मिलाकर भूमि से टिकाएँ और बाजुओं को पंजों की सहायता से सर एवं कंधो को ऊपर उठाएँ । कमर को तानकर ऊपर उठाएँ । सर को गर्दन पीछे करके लटकाएँ । ऐड़ियों और पंजों को मिलाएँ । पाँवों के तलवे भूमि से चिपके रहने चाहिए । हाथों के पंजे भूमि पर चित्रानुसार होने चाहिए ।
कोणासन में ध्यान - इस आसन में ध्यान को मणिपुर चक्र में के करना चाहिए ।
लाभ - कंधे व बाजू मजबूत होते हैं । पेट की सख्ती दर होती है । मेरुदंड का व्यायाम होता है। नस - नाड़ियों स्वाभाविक स्थिति में आ जाती है।
सावधानियाँ-
1 . उत्तर दिशा की ओर सिर करके आसन न लगाएँ ।
2 . शरीर के अंगों का संचालन धीरे - धीरे करें और अभ्यास के द्वारा आसन लगाने में सफलता प्राप्त करें ।
प्रायोगिक विधि – बाजुओं को पीछे की ओर मोड़कर ऐड़ियों को मिलाकर भूमि से टिकाएँ और बाजुओं को पंजों की सहायता से सर एवं कंधो को ऊपर उठाएँ । कमर को तानकर ऊपर उठाएँ । सर को गर्दन पीछे करके लटकाएँ । ऐड़ियों और पंजों को मिलाएँ । पाँवों के तलवे भूमि से चिपके रहने चाहिए । हाथों के पंजे भूमि पर चित्रानुसार होने चाहिए ।
कोणासन में ध्यान - इस आसन में ध्यान को मणिपुर चक्र में के करना चाहिए ।
लाभ - कंधे व बाजू मजबूत होते हैं । पेट की सख्ती दर होती है । मेरुदंड का व्यायाम होता है। नस - नाड़ियों स्वाभाविक स्थिति में आ जाती है।
सावधानियाँ-
1 . उत्तर दिशा की ओर सिर करके आसन न लगाएँ ।
2 . शरीर के अंगों का संचालन धीरे - धीरे करें और अभ्यास के द्वारा आसन लगाने में सफलता प्राप्त करें ।