शशांक अर्थात् खरगोश अक्सर इस आसन में बैठता है या सोता है । इसलिए इसे शशांकासन कहते हैं ।
प्रायोगिक विधि - भमि पर आसन बिछाकर वज्रासन की मुद्रा में बैठ जाएँ । गहरी साँस लें और हाथों को बाँह ऊपर करके ऊपर की ओर तानें । हाथों को हथेलियाँ खुली हुई एवं सामने की ओर हों ।
अब साँस छोड़ते हुए कमर से झुकें , हथेलियों को बाहें ताने हुए ही भूमि पर लगाएँ । माथे को भूमि से सटाएँ ।
शशांकासन में ध्यान - इस आसन में त्राटक बिन्दु विकसित करने , चिन्तन करने , किसी समस्या को सुलझाने के लिए ध्यान लगाया जाता है ।
लाभ - नस , नाड़ियाँ स्वस्थ एवं लचीली होकर सुचारू रूप से कार्य करती हैं । दमा ठीक होता है । हृदय , फेफड़े और साँस के विकार दूर होते हैं । इस आसन में ध्यान लगाने से मन शान्त होता है । क्रोध पर नियंत्रण होता है । बुद्धि विकसित होती है ।
सावधानियाँ-
1 . सिर पूर्व की ओर करके आसन लगाएँ ।
2 . शरीर के अंगों को मोड़ते समय धैर्य रखें । इसमें जल्दीबाजी न करके । धीरे - धीरे अभ्यास करें ।
प्रायोगिक विधि - भमि पर आसन बिछाकर वज्रासन की मुद्रा में बैठ जाएँ । गहरी साँस लें और हाथों को बाँह ऊपर करके ऊपर की ओर तानें । हाथों को हथेलियाँ खुली हुई एवं सामने की ओर हों ।
अब साँस छोड़ते हुए कमर से झुकें , हथेलियों को बाहें ताने हुए ही भूमि पर लगाएँ । माथे को भूमि से सटाएँ ।
शशांकासन में ध्यान - इस आसन में त्राटक बिन्दु विकसित करने , चिन्तन करने , किसी समस्या को सुलझाने के लिए ध्यान लगाया जाता है ।
लाभ - नस , नाड़ियाँ स्वस्थ एवं लचीली होकर सुचारू रूप से कार्य करती हैं । दमा ठीक होता है । हृदय , फेफड़े और साँस के विकार दूर होते हैं । इस आसन में ध्यान लगाने से मन शान्त होता है । क्रोध पर नियंत्रण होता है । बुद्धि विकसित होती है ।
सावधानियाँ-
1 . सिर पूर्व की ओर करके आसन लगाएँ ।
2 . शरीर के अंगों को मोड़ते समय धैर्य रखें । इसमें जल्दीबाजी न करके । धीरे - धीरे अभ्यास करें ।