शवासन की ही भाँति यह शरीर के विश्राम का आसन है । इस आसन में शरीर को पूर्णतया शिथिल छोड़ दिया जाता है , इसलिए इसे शिथिलासन कहते हैं ।
प्रायोगिक विधि - भूमि पर बिछे आसन पर पट्ट ( पेट के बल ) लेटकर दाया कान जमीन पर लगाएँ । बायीं टॉग और बाँह को चित्र के अनुसार मोड़ें । शिथिलासन दायाँ बाजू एवं दाई टांग एकदम सीधी रखें । दायाँ बाजू कमर की सीध में रखें । पेट और छाती को भूमि पर सटा कर रखें । शरीर पूर्णत : ढीला छोड़ दें । । इस आसन में कोई अंग तनाव से भरा नहीं होना चाहिए । इस आसन को उलटकर अर्थात् बायाँ कान जमीन पर लगाकर बायीं टाँग और बाजू को फैलाकर भी करें ।
शिथिलासन में ध्यान - यह शरीर को विश्राम देने का आसन है । इसमें ' ध्यान ' लगाने से शान्ति मिलती है । ध्यान श्वसन क्रिया पर लगाना चाहिए अर्थात् साँस के मार्ग पर सॉस को चंढ़ते - उतरते अनुभव करना चाहिए । इस आसन में सोने से नींद अच्छी आती है ।
लाभ - शरीर की थकान दूर करने एवं अनिद्रा के रोग पर विजय प्राप्त करने के लिए यह आसन उपयोगी है ।
प्रायोगिक विधि - भूमि पर बिछे आसन पर पट्ट ( पेट के बल ) लेटकर दाया कान जमीन पर लगाएँ । बायीं टॉग और बाँह को चित्र के अनुसार मोड़ें । शिथिलासन दायाँ बाजू एवं दाई टांग एकदम सीधी रखें । दायाँ बाजू कमर की सीध में रखें । पेट और छाती को भूमि पर सटा कर रखें । शरीर पूर्णत : ढीला छोड़ दें । । इस आसन में कोई अंग तनाव से भरा नहीं होना चाहिए । इस आसन को उलटकर अर्थात् बायाँ कान जमीन पर लगाकर बायीं टाँग और बाजू को फैलाकर भी करें ।
शिथिलासन में ध्यान - यह शरीर को विश्राम देने का आसन है । इसमें ' ध्यान ' लगाने से शान्ति मिलती है । ध्यान श्वसन क्रिया पर लगाना चाहिए अर्थात् साँस के मार्ग पर सॉस को चंढ़ते - उतरते अनुभव करना चाहिए । इस आसन में सोने से नींद अच्छी आती है ।
लाभ - शरीर की थकान दूर करने एवं अनिद्रा के रोग पर विजय प्राप्त करने के लिए यह आसन उपयोगी है ।