2 . सुखासन

सुखासन का अर्थ है , ' वह आसन , जिसमें बैठने से सुख मिले । ' – स्पष्ट है कि यह आसन आराम से बैठने का आसन है और सरल है ।



सुखासन प्रायोगिक विधि - सुखासन एक सरल आसन है । इस मुद्रा में हम दैनिक जीवन में अक्सर बैठते हैं , किन्तु हम उसे सुखासन नहीं कह सकते । कारण यह है कि हम मुद्रा तो वह बना लेते हैं , किन्तु इसके नियमों का सूक्ष्मता से पालन नहीं करते । सुखासन के लिए एक ट्री या कम्बल भूमि पर बिछाएँ । घुटनों को मोड़ कर पालथी मारकर बैठ जाएँ । हाथों को आगे स्वाभाविक रूप से ढीला छोड़ दें । हाथ घुटनों पर भी रखा जा सकता है , पर वह ढीला हो । कमर , पीठ , रीढ़ , गर्दन सीधी रखें । अपनी पेशियों पर कोई दबाव न दें । जैसे आराम मिलता हो , बैठे । सुखासन की कई मुद्राएं हो सकती हैं । कोई भी ऐसी मुद्रा जिमसें आपकोबैठने से आराम मिलता हो , सुखासन है । शर्त केवल यह है कि पेशियों को ढीला छोड़ दें और पीठ , कमर , गर्दन आदि को सीधा रखें । |

सुखासन में ध्यान - सुखासन में वे सभी ध्यान क्रियाएँ की जा सकती है , जो पद्मासन में की जाती हैं । त्राटक के अभ्यास के लिए प्रारम्भ में इसी आसन का प्रयोग उचित है ।

 लाभ - बैठकर करने वाले किसी कार्य के लिए यही आसन उपयुक्त है । इसमें बैठने से थकावट नहीं होती । मेरुदंड सीधा होता है । कमर , मेर आदि में लचीलापन आता है ।

सावधानी - उत्तर दिशा की ओर मुंह करके न बैठे । पेशियों को ढीला रखें । कमर , पीठ , रीढ़ , गर्दन को सीधा रखें । सुखासन में ' ध्यान ' लगाते समय पहले मस्तिष्क को भी स्वतन्त्र छोड़ दें ताकि विचारों की धारा का शमन हो सके ।