22 जानुशिरासन

जानु का अर्थ घुटना होता है । इस आसन में घुटनो को सिर से सटाया जाता है इसीलिए इस आसन का नाम जानुशिरासन है।




प्रायोगिक विधि भूमि पर आसन बिछा कर दोनों टांग सामने की ओर फैलाकर बैठ जाइए । दाई टांग को फैला रहने दीजिए । इसके पंजे एवं तलवे को दाई जांध से चिपकाइए । अपने दोनों हाथों से दाएं पैर के अंगूठे या पंज को पकड़िए , रेचक करके बाह्य कुम्भक कीजिए । पेट को नाभी पर जोर देते हुए अन्दर की ओर पिचकाइए । अब धीरे - धीरे आगे की ओर कमर से मुड़ते हुए धीरे - धीरे झुकिए । ललाट या नाक घुटनों से लगाइए । अभ्यास धीरे - धीरे कीजिए । पूरक सांस लेते हुए धीरे - धीरे आसन खोलिए । | अब इस आसन को विपरीत मुद्रा में कीजिए । अर्थात् बाई टांग फैलाइए । और दाई टांग मोड़कर मूलाधार चक्र से लगाए । 
जानुशिरासन में ध्यान जानुशिरासन में रीढ़ की हड़ी में ध्यान लगाया जाता है ।

लाभ - इस आसन से रीढ़ की हड़ी मजबूत एवं लचीली होती है । घुटनों , पीठ , कमर , टांगों आदि की नसों एवं पेशियों में मजबूती आती है । रीढ़ की हड़ी के मध्य से गुजरने वाली मूल रक्त नलिका के विकार दूर होते हैं । इस आसन से पीठ एवं कमर में भी लचीलापन आता है । इससे साइटिका दर्द में भी फायदा होता है । टखनों , पिंडलियों , घुटनों आदि के विकार दूर होते हैं । वीर्य सम्बन्धी दोष दूर होते हैं । शुक्राणुओं में वृद्धि होती है । मधुमेह का रोग दूर होता है । यह प्लीहा , यकृत , आंतों आदि के दोषों को दूर करने में भी सक्षम है । पेट का मुटापा दूर होता है । पेट , कमर , जांघों , बांहों , पीठ आदि में सुडौलता आती है ।

सावधानियाँ-
1 . आसन पूर्व दिशा की ओर मुंह करके लगाएं ।
2 . रजस्वला एवं गर्भवती स्त्री को यह आसन नहीं लगाना चाहिए ।
 3 . कमर को मोड़ने में धीरे - धीरे अभ्यास करें ।