शरीर की मुद्रा को सिंह के शरीर की भांति बना कर आसन लगाने को सिंहासन कहते हैं ।
प्रायोगिक विधि - भूमि पर आसन लगाकर वज्रासन के स्थिति में बैठ जाएं । दोनों हथेलियों के पंजों को शेर की भांति तानकर दोनों घुटनों पर रखिए । जीभ को बाहर निकालिए , आंखों को शेर की आंखों की भांति फैलाइए । पूरक सांस खींचकर गले से निकालते | हुए सिंह की भांति गुर्राइए ।
दूसरी विधि - भूमि पर आसन बिछाकर उगते हुए सूर्य की ओर वज्रासन लगाकर बैठ जाइए । दोनों हथेलियों को कमर के सामने की ओर झुकाइए । गर्दन को इस प्रकार उठाएं , जैसे शेर बैठकर दहाड़ने के समय उठाता है ।
लाभ मुंह खोलकर सिंहासन के मध्य से गुजरने वाली मूल रक्त नलिका के विकार दूर होते हैं । इस आसन से पीठ एवं कमर में भी लचीलापन आता है । इससे साइटिका दर्द में भी फायदा होता है । टखनों , पिंडलियों , घुटनों आदि के विकार दूर होते हैं । वीर्य सम्बन्धी दोष दूर होते हैं । शुक्राणुओं में वृद्धि होती है । मधुमेह का रोग दूर होता है । यह प्लीहा , यकृत , आंतों आदि के दोषों को दूर करने में भी सक्षम है । पेट का मुटापा । दूर होता है । पेट , कमर , जांघों , बांहों , पीठ आदि में सुडौलता आती है ।
सावधानियाँ-
1 . आसन पूर्व दिशा की ओर मुंह करके लगाएं ।
2 . रजस्वला एवं गर्भवती स्त्री को यह आसन नहीं लगाना चाहिए ।
3 . कमर को मोड़ने में धीरे - धीरे अभ्यास करें ।
प्रायोगिक विधि - भूमि पर आसन लगाकर वज्रासन के स्थिति में बैठ जाएं । दोनों हथेलियों के पंजों को शेर की भांति तानकर दोनों घुटनों पर रखिए । जीभ को बाहर निकालिए , आंखों को शेर की आंखों की भांति फैलाइए । पूरक सांस खींचकर गले से निकालते | हुए सिंह की भांति गुर्राइए ।
दूसरी विधि - भूमि पर आसन बिछाकर उगते हुए सूर्य की ओर वज्रासन लगाकर बैठ जाइए । दोनों हथेलियों को कमर के सामने की ओर झुकाइए । गर्दन को इस प्रकार उठाएं , जैसे शेर बैठकर दहाड़ने के समय उठाता है ।
लाभ मुंह खोलकर सिंहासन के मध्य से गुजरने वाली मूल रक्त नलिका के विकार दूर होते हैं । इस आसन से पीठ एवं कमर में भी लचीलापन आता है । इससे साइटिका दर्द में भी फायदा होता है । टखनों , पिंडलियों , घुटनों आदि के विकार दूर होते हैं । वीर्य सम्बन्धी दोष दूर होते हैं । शुक्राणुओं में वृद्धि होती है । मधुमेह का रोग दूर होता है । यह प्लीहा , यकृत , आंतों आदि के दोषों को दूर करने में भी सक्षम है । पेट का मुटापा । दूर होता है । पेट , कमर , जांघों , बांहों , पीठ आदि में सुडौलता आती है ।
सावधानियाँ-
1 . आसन पूर्व दिशा की ओर मुंह करके लगाएं ।
2 . रजस्वला एवं गर्भवती स्त्री को यह आसन नहीं लगाना चाहिए ।
3 . कमर को मोड़ने में धीरे - धीरे अभ्यास करें ।