25 . उत्तानपादासन

यह आसन पीठ के बल लेटकर पांवों को ऊपर उठाकर लगाया जाता है । इसलिए इसे उत्तानपादासन कहते हैं ।




प्रायोगिक विधि - भूमि पर आसन बिछाकर पीठ के बल वित्त लेटकर टोनों हथेलियों को जांघों के पास भूमि से लगाकर बाहों को शरीर के साथ लगाकर रखिये। लम्बी सांस खींच कर कुम्भक कीजिए । हथेलियों पर डालते हुए टांगों को एक - दूसरे से सटाकर सीधी ऊपर की टागों की स्थिति शरीर से 120° के कोण पर रखें । पुरक करके कुम्भक लगाइए । जितनी देर सांस रोक कर इस आसन को लगाए रख सकते हैं , लगाए रखिए । इसके पश्चात् रेचक करते हुए पैरो को भूमि से लगाइए । शवासन में विश्राम कीजिए । 


प्रारम्भ में टांगों को थोड़ा ही ऊपर उठाइए । धीरे - धीरे उसे भूमि से दूर उठाते जाए । भमि से 60° और शरीर से 120° का कोण अभ्यास के बाद ही बनता है ।

उत्तानपादासन में ध्यान - यह शारीरिक व्यायाम का एक आसन है । इसमें ध्यान नहीं लगाया जाता । ।

लाभ – पेट की गैस , कब्ज , हर्निया , कमर - दर्द आदि को दूर करके यह आसन पेट की नस - नाड़ियों एवं आमाशय को बल प्रदान करता है । टांगों एवं कमर के जोड़ों को लचकीला और मजबत बनाता है । इनकी पेशियाँ भी मजबूत एवं लचीली होती हैं । पेट की चर्बी कम करता है ।

सावधानियाँ 
1 . पूर्व दिशा की ओर सिर करके आसन लगाएं ।
  2 . टांगों को ऊपर उठाने में धैर्य के साथ अभ्यास करें । इसी प्रकार गिराने में भी धीरे - धीरे नीचे लाएं ।