कहा जाता है कि प्रसिद्ध प्रभुभक्त ध्रुव ' ने इसी आसन को लगाकर तपस्या की , इसलिए इस आसन को धुवासन कहा जाता है ।
प्रायोगिक विधि : भूमि पर आसन बिछाकर सीधे खड़े हो जाइए । खड़े होने में आपकी स्थिति सावधान ' की मुद्रा में होनी चाहिए । दाईं टांग को घुटने से मोड़कर ऐडी को बाई टांग के जंग - मूल में सटा लीजिए । दोनों हाथों को जोड़कर प्रणाम की मुद्रा में लाएं और उसे हृदय के पास ऊपर लगाइए । सांस की गति सामान्य रखें । जितनी देर तक इस मुद्रा में रह सकते हैं , रहें । कुछ देर तक आराम कीजिए , फिर टांगों को बदलकर आसन लगाइए ।
ध्रुवासन में ध्यान ध्रुवासन में त्राटक बिन्दु पर ध्यान लगाकर चेतना को । केन्द्रित किया जाता है ।
लाभ - यह मानसिक एकाग्रता प्राप्त करने का आसन है । छात्र - छात्राओं के लिए यह आसन अत्यन्त उपयुक्त है , क्योंकि इससे स्मरण शक्ति का विकास होता है और आलस्य दूर भागता है ।
सावधानियां
1 . पूर्व दिशा की ओर मुँह करके यह आसन लगाएं ।
2 . टांगों को मोड़ने का अभ्यास धैर्यपूर्वक करें । 3 . प्रदूषित वायु वाले स्थान पर आसन न लगाएं।
प्रायोगिक विधि : भूमि पर आसन बिछाकर सीधे खड़े हो जाइए । खड़े होने में आपकी स्थिति सावधान ' की मुद्रा में होनी चाहिए । दाईं टांग को घुटने से मोड़कर ऐडी को बाई टांग के जंग - मूल में सटा लीजिए । दोनों हाथों को जोड़कर प्रणाम की मुद्रा में लाएं और उसे हृदय के पास ऊपर लगाइए । सांस की गति सामान्य रखें । जितनी देर तक इस मुद्रा में रह सकते हैं , रहें । कुछ देर तक आराम कीजिए , फिर टांगों को बदलकर आसन लगाइए ।
ध्रुवासन में ध्यान ध्रुवासन में त्राटक बिन्दु पर ध्यान लगाकर चेतना को । केन्द्रित किया जाता है ।
लाभ - यह मानसिक एकाग्रता प्राप्त करने का आसन है । छात्र - छात्राओं के लिए यह आसन अत्यन्त उपयुक्त है , क्योंकि इससे स्मरण शक्ति का विकास होता है और आलस्य दूर भागता है ।
सावधानियां
1 . पूर्व दिशा की ओर मुँह करके यह आसन लगाएं ।
2 . टांगों को मोड़ने का अभ्यास धैर्यपूर्वक करें । 3 . प्रदूषित वायु वाले स्थान पर आसन न लगाएं।