यह सिद्धों का आसन है । इस आसन में लम्बे समय तक बैठकर सिद्धि प्राप्त की जाती है ।
प्रायोगिक विधि - भूमि पर बिछी दरी पर दोनों टाँगों को सामने की ओर फैलाकर बैठ जाएँ । बाईं टाँग को घुटने से मोड़कर एडी को गुदा एवं अंडकोष के बीच कसकर सटा लीजिए । इसके तलवे एवं पंजों को दायीं जाँघ से चिपका लें । अब दायीं टाँग को घुटने से मोड़कर ऐड़ी को जननेंद्रिय के ऊपर इस प्रकार कसकर सटाएँ कि जननेंद्रिय पर दबाव न पड़े । इसका पंजा बाँयी टौंग की पिंडली तथा जाँघ से मिला हुआ रहे । दोनों टखनों की हड्डियां एक - दूसरे पर हों । कमर , रीढ़ , गर्दन आदि सीधी रखें। दोनों हाथों को नाभि के नीचे ब्रह्मांजलि की दशा में रखें ।
सिद्धासन में ध्यान - आँखों से नाक की लौ को देखें । ललाट के मध्य में दबाव पड़ेगा । इस दबाव को बनाए रखकर ध्यान एकाग्रचित्त कीजिए ।
लाभ - हृदय रोग , श्वास रोग , यौन रोग , पाचन क्रिया की गड़बड़ी आदि ठीक होती है । इसका वास्तविक लाभ मानसिक है । इसमें ध्यान लगाने से मानसिक शान्ति मिलती है । दृष्टि तीक्ष्ण होती है । त्राटक बिन्दु में प्रकाश भरता है । कहा जाता है कि भगवान शंकर ने इसी मुद्रा में ध्यान लगाकर अपने तीसरे नेत्र को महाशक्तिवान बनाया था । इसलिए यह आसन चमत्कारिक शक्तियों को प्रदान करने वाला है । त्राटक बिंदु के खुलने पर दृष्टि का भाव बाहरी संसार पर प्रभाव डालने लगता है ।
सावधानियाँ -
1 . उत्तर दिशा की ओर मुंह करके यह आसन न लगाएँ ।
2 . प्रारम्भ में दो मिनट तक ही इसमें ध्यान लगाएँ । बाद में इसे बढ़ाते जाएँ। 15 मिनट से अधिक इस आसन में बैठने के लिए त्राटक बिन्दु को केन्द्रित करने का कुशल अभ्यास आवश्यक है । सामान्य लोगों के लिए 15 मिनट से अधिक ध्यान लगाना उचित नहीं है । मस्तिष्क की नसें विकृत हो सकती हैं।
3 . इस आसन के अभ्यास के दिनों में गर्म या उत्तेजक पदार्थों का आहार पूर्णतया वर्जित है । नमक भी कम खायें ।
प्रायोगिक विधि - भूमि पर बिछी दरी पर दोनों टाँगों को सामने की ओर फैलाकर बैठ जाएँ । बाईं टाँग को घुटने से मोड़कर एडी को गुदा एवं अंडकोष के बीच कसकर सटा लीजिए । इसके तलवे एवं पंजों को दायीं जाँघ से चिपका लें । अब दायीं टाँग को घुटने से मोड़कर ऐड़ी को जननेंद्रिय के ऊपर इस प्रकार कसकर सटाएँ कि जननेंद्रिय पर दबाव न पड़े । इसका पंजा बाँयी टौंग की पिंडली तथा जाँघ से मिला हुआ रहे । दोनों टखनों की हड्डियां एक - दूसरे पर हों । कमर , रीढ़ , गर्दन आदि सीधी रखें। दोनों हाथों को नाभि के नीचे ब्रह्मांजलि की दशा में रखें ।
सिद्धासन में ध्यान - आँखों से नाक की लौ को देखें । ललाट के मध्य में दबाव पड़ेगा । इस दबाव को बनाए रखकर ध्यान एकाग्रचित्त कीजिए ।
लाभ - हृदय रोग , श्वास रोग , यौन रोग , पाचन क्रिया की गड़बड़ी आदि ठीक होती है । इसका वास्तविक लाभ मानसिक है । इसमें ध्यान लगाने से मानसिक शान्ति मिलती है । दृष्टि तीक्ष्ण होती है । त्राटक बिन्दु में प्रकाश भरता है । कहा जाता है कि भगवान शंकर ने इसी मुद्रा में ध्यान लगाकर अपने तीसरे नेत्र को महाशक्तिवान बनाया था । इसलिए यह आसन चमत्कारिक शक्तियों को प्रदान करने वाला है । त्राटक बिंदु के खुलने पर दृष्टि का भाव बाहरी संसार पर प्रभाव डालने लगता है ।
सावधानियाँ -
1 . उत्तर दिशा की ओर मुंह करके यह आसन न लगाएँ ।
2 . प्रारम्भ में दो मिनट तक ही इसमें ध्यान लगाएँ । बाद में इसे बढ़ाते जाएँ। 15 मिनट से अधिक इस आसन में बैठने के लिए त्राटक बिन्दु को केन्द्रित करने का कुशल अभ्यास आवश्यक है । सामान्य लोगों के लिए 15 मिनट से अधिक ध्यान लगाना उचित नहीं है । मस्तिष्क की नसें विकृत हो सकती हैं।
3 . इस आसन के अभ्यास के दिनों में गर्म या उत्तेजक पदार्थों का आहार पूर्णतया वर्जित है । नमक भी कम खायें ।