39 . गर्भासन

गर्भ में शिशु के शरीर की जो मुद्रा होती है , वही मुद्रा इस आसन में बनाई जाती है । इसलिए इसे गर्भासन कहते हैं ।




प्रायोगिक विधि - भूमि पर एक दरी या कम्बल बिछा लीजिए । उस पर दोनों टाँगें सामने की ओर फैलाकर बैठ जाइए । फिर पद्मासन लगाइए । इसके पश्चात् कुक्कुटासन की भाँति दोनों हाथों को टाँगों एवं जाँघों के मोट के बीच से निकालिए । धीरे - धीरे कोहनियों को अन्दर | और जाँघों के मोड़ को ऊपर कीजिए । जब दोनों कोहनी बाहर निकल जाएं , तो दोनों गालों पर हाथ रखकर चित्रानुसार वैठ जाएं । | यह आसन प्रारम्भ में 5 सेकेण्ड , बाद में पूर्ण अभ्यास के बाद दो मिनट तक करना चाहिए । इसमें साँस की गति सामान्य रखनी चाहिए ।

गर्भासन में ध्यान - ध्यान के लिए , गर्भासन एक उपयुक्त आसन है । | कुंडलिनी की जागृति के लिए सिद्ध योगी इस आसन में ध्यान लगाते हैं । सामान्य रूप से भी रीढ़ की चेतना तरंग और हृदय - स्थल का ध्यान लगाने से चमत्कारिक लाभ होता है ।

 लाभ - इस आसन से पद्मासन के लाभ प्राप्त होते हैं । बाँह , हाथ हाथ के पंजे , जाँघ , टाँग , घुटने , टखनों , पैरों के पंजे , कमर , पीठ आदि का सम्पूर्ण व्यायाम होता है । ये मजबूत एवं लचीले होते हैं । इस आसन में ध्यान लगाने से चेतना , स्फूर्ति , उल्लास , बल आदि की वृद्धि होती है ।
 महिलाओं के शारीरिक सौन्दर्य के सौष्ठव को संतुलित करने वाला यह आसन उनके मासिक धर्म की अनियमितता एवं गड़बड़ी को भी दूर करता है ।

सावधानियाँ 
1 . उत्तर की ओर मुख करके आसन न लगाएँ । 
2 . हाथों को जाँघों - टाँगों के बीच से निकालने में सावधानी रखें । 
3 . पहले पद्मासन एवं कुक्कुटासन का अभ्यास अच्छी तरह कर लें तभी इस आसन का अभ्यास करें ।
4 . आसन भी तक लगाएँ , जब तक आप अतिरिक्त थकान का अनुभव  न करने लगे । 
5 . प्रत्येक अभ्यास धीरे - धीरे करें ।