40 . गोमुखासन

इस आसन में शरीर की मुद्रा गाय के मुख के समान हो जाती है । इसलिए इसे गोमुखासन कहा जाता है ।




प्रायोगिक विधि - भूमि पर कम्बल या दरी बिछा लें । बाईं टाँग को इस प्रकार मोड़े कि उसकी ऐड़ी दाहिने नितम्ब के नीचे आ जाए । दाईं टाँग को घुटने से मोड़कर मुड़ी हुई बाईं टाँग के ऊपर रखिए । स्थिति ऐसी होनी चाहिए कि दोनों घुटने एक - दूसरे के ऊपर आ जाएं । दाहिने पाव की ऐड़ी बाएँ कूल्हे के नीचे लगायें । तलवा ऊपर की ओर हो । अब दाहिने हाथ को कंधे के ऊपर से मोड़कर पीछे ले जाइए । बायें हाथ को बगल से पीछे की ओर ले जाकर दाएँ हाथ की उँगलियाँ पकड़ लें । सिर को सीधा रखिए । कमर , पीठ , रीढ़ की हड़ी भी सीधी होनी चाहिए । दृष्टि सामने की ओर होनी चाहिए । साँस की गति सामान्य रखें । कुछ सेकेण्ड बाद हाथों की मुद्रा उलटिए । इस प्रकार हाथों की मुद्रा बदलते हुए चार - पाँच बार तक इस आसन को लगाने का अभ्यास करें ।

गोमुखासन में ध्यान - गोमुखासन में रीढ़ की हड्डी में दोनों पीठ के कूल्हों के मध्य ध्यान लगाया जाता है । वैसे इस आसन में रीढ़ की चेतना तरंगों की गति पर भी ध्यान लगाया जा सकता है ।

लाभ - इस आसन से धातु की दुर्बलता , मधुमेह , प्रमेह , बहुमूत्र आदि रोग दूर होते हैं । छाती चौड़ी होती है । पीठ , गर्दन , बाँह एवं टाँगों की मांसपेशियाँ लचीली एवं सुगठित होती हैं । इससे लो ब्लडप्रेशर और हर्निया भी ठीक होता है । | स्त्रियों के मासिक धर्म एवं ल्यूकोरिया को दूर करने वाला यह आसन उनके वक्षों , पीठ , बाहों , जाँघों , कमर आदि को सुडौलता प्रदान करके लचीला बनाती है । इस आसन में ध्यान लगाने से मस्तिष्क को बल मिलता है । स्फूर्ति , आनन्दोल्लास एवं आत्मविश्वास की वृद्धि होती है ।

सावधानियाँ 1 . उत्तर की ओर मुँह करके आसन न लगाएँ । 2 . शरीर के अंगों का संचालन अत्यन्त सावधानी से करें ।