43 . धनुराकर्षण

आसन धनुरासन के बारे में आप पहले जान चुके हैं । यह आसन भी धनुरासन के समान ही है । धनुष की कमान को पकड़कर जब खींचा जाता है , तब उसमें  एक तनाव का बल कार्य करता है । इस आसन में शरीर की मुद्रा को तो खींचे हए धनुष की आकृति में लाया ही जाता है , पेशियों के तनाव का बल भी उसी प्रकार कार्य करता है , जिस प्रकार कमान खींचे हुए धनुष में तनाव - बल ।




 प्रायोगिक विधि - भूमि पर कम्बल या दरी बिछाकर बैठ जाएँ । दोनों टांगो को सामने की ओर फैलाएँ । बाएँ हाथ के अंगूठे और उसके साथ वाली उँगली से दाएँ पाँव के अंगूठे को पकड़िए । अब बाई टौंग को घुटने से मोड़कर इसकी ऐड़ी को दाई जाँघ पर रखिए । अब दाएँ हाथ के अंगूठे और उसकी साथ वाली उँगली से बाएँ पाँव का अंगूठा पकड़िए और पैर को ऊपर उठाइए । धीरे - धीरे उसे उठाते हुए कान के साथ लगाइए । बाएँ हाथ से दाएँ पाँव के अंगूठे को पकड़कर खींचिए । पूरक साँस लेकर कुम्भक कीजिए । । अब जितनी देर तक इस स्थिति में सरलता से सांस रोके रह सकते हैं , रहिए । इसके बाद कुम्भक तोड़कर आसन तोड़िए ।   पैरों एवं हाथों को बदलकर फिर उपर्युक्त तरीके से आसन लगाएँ । । आरम्भ में एक चक्र , फिर पाँच चक्र तक इस आसन का अभ्यास कर सकते हैं ।

धनुराकर्षण आसन में ध्यान - यह शारीरिक व्यायाम का आसन है । इसमें ध्यान नहीं लगाया जाता ।

लाभ – कुर्सी पर बैठकर कार्य करने वाले व्यक्तियों के लिए यह आसन बहुत लाभदायक है । इसमें पैरों एवं हाथों का सम्पूर्ण व्यायाम होता है । इससे इनकी पेशियों सुरक्षित , मजबूत एवं लचीली होती हैं । कमर एवं कंधों की भी पेशियाँ मजबूत होती हैं । यह आसन वात रोग , पाँव-हाथों के जोड़ का दर्द , गठिया , लकवा आदि रोगों के लिए रामबाण है । पेट के रोग और यकृत के रोग में भी लाभ पहुँचता है ।

सावधानियाँ 
1 . आसन प्रात : काल में पूर्व की ओर एवं सायंकाल में पश्चिम की ओर मुख करके करें ।
 2 . पैर को उठाकर पंजे को कान से सटाने में कठिनाई होती है । इसे धीरे - धीरे अभ्यास करके साधे ।