44 . एकपाद - स्कंधपादासन

यह आसन कंधों पर एक पैर को रखकर बनाया जाता है । इसलिए इसे एकपाद् - स्कंधपादासन कहा जाता है ।



 प्रायोगिक विधि - भूमि पर दरी या कम्बल बिछाकर बैठ जाइए । एकपाद - स्कंधपादासन दोनों टाँगों को सामने की ओर फैलाइए । दाहिनी टाँग को घुटने से मोड़ें । पैर के गठ्ठ एवं पंजों को पकड़कर इसे ऊपर उठाएँ । धीरे - धीरे इसे ऊपर उठाकर सर को झुकाते हुए टॉग कंधे पर रखें । दोनों हाथों को प्रणाम की मुद्रा में जोड़ें । सांस की गति सामान्य रखें । | जितनी देर इस आसन में सरलता से रह सकते हैं , रहिए । आसन तोड़िए । फिर टौंग बदलकर यही क्रिया दोहराये ।

एकपाद - स्कंधपादासन में ध्यान - इस आसन में हृद्य चक्र पर ध्यान लगाएँ। रीढ़ की हड़ी एवं हड़ियों की मज्जा प्रवाह पर भी ध्यान लगाया जाता है ।

लाभ - लकवा , गठिया , हृदय रोग , सरदर्द , वात रोग , कब्ज आदि को दूर करके यह आसन गर्दन , कंधों एवं छाती को बल प्रदान करता है । इस आसन के अभ्यास से मुटापा दूर होता है । वीर्य गाढ़ा होता है और इसकी मात्र भी बढ़ती है ।

सावधानियाँ 
1 . उत्तर दिशा की ओर मुँह करके आसन न लगाएँ ।
 2 . टाँग को कंधे पर चढ़ाते समय धैर्य से काम लें । इसको साधने के लिए धीरे - धीरे अभ्यास करें ।