46 . सर्वांगासन

इस आसन में शरीर के सभी अंगों का व्यायाम होता है , इसलिए इसे सर्वांगासन कहते हैं ।




 प्रायोगिक विधि - भूमि पर दरी या कम्बल बिछा लें । पीठ के बल शवासन की मुद्रा में लेट जाएँ । पंजों को धरती पर हथेलियों की तरफ से टिकाइए । बाहें शरीर के समानान्तर तान कर रखें । दोनों पैरों को धीरे - धीरे ऊपर उठाएँ । तलवों को क्षितिज की ओर ऊपर करके जाँघों एवं टाँगों को सीधी रखें । साँस बाहर निकालिए और टाँगों को और चेहरे की ओर झुकाइए । स्मरण रखिए , जाँघे , घुटने एवं टाँगें बिल्कुल डंडे की तरह सीधी रहनी चाहिए । इस प्रक्रिया में आपकी कमर , नितम्ब , पेट आदि ऊपर उठेंगे । हाथ से नितम्बों को पकड़े मुड़ते रहें । जब पीठ का भी आधा हिस्सा भूमि छोड़ दे तो हाथों को कमर पर रखकर पीठ को और ऊपर उठाएँ । अब आपका कंधा ही भूमि से लगा रहेगा । गर्दन कंधों से 90° का कोण बनाएगी । कमर पकड़े हुए ही टाँगों को क्षितिज की और उठाकर सीधी कर लें । | जितनी देर तक आप सरलतापूर्वक इस आसन में रह सकते हैं , रहिए । जब टाँगें सीधी हो जाएँ , तो आप सामान्य गति से साँस ले सकते हैं । | आसन तोड़ते समय भी टाँगों को आगे की ओर झुकाएँ । फिर पीठ और | कमर को धीरे - धीरे आसन से लगाएँ । इसके बाद टाँगें सीधी करके धीरे - धीरे धरती की ओर लाते हुए ऐड़ियाँ टिका दें । कुछ देर आराम करें । फिर उठ जाएँ ।

सर्वांगासन में ध्यान - यह आसन कुंडलिनी के ध्यान के लिए अत्यन्त , उपयुक्त है । मेरुदंड के निचले हिस्से से ऊर्जा ग्रहण करके मस्तिष्क में पहुँचाने का ध्यान भी इसमें किया जाता है ।

लाभ - सर्वांगासन , जैसा कि परिचय में ही बताया जा चुका है , सम्पूर्ण शरीर का व्यायाम है । इससे सम्पूर्ण शरीर के सभी अंगों को बल मिलता है। मस्तिष्क , फेफड़े , रक्त धमनियों एवं शिराओं , हृदय आदि को बल मिलता है । रक्त शुद्ध होता है । इस आसन से आँख , कान , गले एवं हृदय के विकारों की समाप्ति होती है । इस आसन में ध्यान लगाने से शरीर को ऊर्जा प्राप्त होती है । मस्तिष्क के विकार एवं विचार शान्त होते हैं । एकाग्रता की शक्ति बढ़ती है । प्रफुल्लता एवं आनन्द प्राप्त होता है ।

सावधानियाँ 
1 . सिर पूर्व दिशा में रखें । 
2 . टाँगों को उठाते समय धैर्य रखें । कोई भी झटका आपके कंधों एवं पीठ की किसी नस को चढ़ा सकता है । वर्टिब्रेट कॉलम पर भी असर पड़ सकता है । 
3 . आसन तोड़ते समय भी टाँगों को आगे झुकाकर पहले पीठ भूमि से लगाएँ । सीधे पैरों को नीचे लाएँ । गर्दन की हड्डी पर प्रभाव पड़ सकता है , जो खतरनाक भी हो सकता है ।