48 . हलासन

आसन में शरीर की मुद्रा ' हल ' के समान हो जाती है , इसलिए इसे हलासन कहते हैं ।




प्रायोगिक विधि - भूमि पर दरी या कम्बल बिछाकर पीठ के बल - लेट जाइए । बाहें शरीर के समानान्तर सीधी फैली हों । हाथ का पंजा धरती से लगा हो ।  अब सँस भरकर हथेलियों से भूमि को दबाते हुए दोनों टाँगों की ऐडियों - पंजों  को मिलाकर टाँगों को सीधी अवस्था में ऊपर उठाइए । पहले टाँगों को सीधी क्षितिज की ओर खड़ा कीजिए । फिर कोहनियों को भूमि पर टिकाते हुए कमर पकड़कर कमर को उठाते हुए टाँगों को चेहरे की ओर झुकाते हुए पीठ भी उठाते जाएँ । धीरे - धीरे टाँगों को चित्र के अनुसार मुद्रा में ले आएँ । बाहों को मोड़कर हथेलियों को तकिए की तरह सिर के नीचे लगाएँ । हलासन में साँस की गति सामान्य रखी जाती है अर्थात् जैसी चल रही है , चलने दीजिए । हलासन को खोलने के लिए धीरे - धीरे टाँगों को ऊपर उठाते हुए सीधा करें , फिर भूमि पर टिकाएँ । कमर को हाथों से सहारा दें ।


हलासन में ध्यान - इस आसन में रीढ़ की हड्डी के दोनों पीठ के कूल्हों के बीच ध्यान लगाया जाता है । इसमें ललाट के मध्य भी ध्यान लगाया जाता है, किन्तु गृहस्थ लोग ललाट के मध्य बिन्दु पर ' ध्यान ' कुछ सेकेण्ड ही लगाएँ।


लाभ – हर्निया , मधुमेह , यकृत रोग , प्लीहा रोग , पेट रोग के लिए यह आसन अत्यन्त उपयोगी है । इससे रीढ़ की हड्डी में मजबूती एवं लचीलापन आता है । दोनों कंधे पुष्ट होते हैं । कमर लचीली एवं मजबूत होती है । पेट का मुटापा कम होता है । स्त्रियों के लिए यह आसन अत्यन्त उपयुक्त है । इससे गर्भाशय के विकार , मासिक धर्म आदि के विकार दूर होते हैं । इस आसन से बन्ध्यापन दूर होता है । शरीर सुडौल बनता है । बालों का सफेद होना बन्द होता है । इस आसन में ध्यान लगाने से उपर्युक्त लाभ कई गुणा बढ़ जाता है । मानसिक शान्ति , आत्मबल , चेतना - स्फूर्ति , उल्लास आदि की प्राप्ति होती है ।


सावधानियाँ 

1 . आसन में सिर को उत्तर की ओर न रखें ।
2 . यह एक कठिन आसन है । अभ्यास में धैर्य रखें और प्रत्येक मुद्रा पर अभ्यास के द्वारा धीरे - धीरे सफलता प्राप्त करें ।