57 . अंजनेयासन

‘ अंजनेयासन ' चक्रासन या अर्द्धचन्द्रासन का ही एक प्रकार है ।




प्रायोगिक विधि _ भमि पर आसन बिछाकर बैठ जाएँ । अब दायां पाँव पीछे की ओर मोड़ते हुए तानें । यह जितना सम्भव हो , जानें । फिर दोनों हाथ प्रणाम की मुद्रा में जोड़ कर बाहों को ऊपर उठा कर तानें । रेचक करके कुम्भक लगाएं । अब कमर से मुड़ते हुए पीछे की ओर झुकें । सर भूमि की ओर झुकाएं । जितना मुड़ सकते हैं , मुड़ें । सरलतापूर्वक जितनी देर इस आसन में रह सकते हैं , रहें । तत्पश्चात् पूरक करते हुए पहले कमर से सीधा हो जाएँ । हाथों से भूमि को पकड़कर टाँगों को खींचें । कुछ देर आराम करके पैरों की मुद्रा बदलकर इस आसन का अभ्यास करें ।

अंजनेयासन में ध्यान - कमर एवं रीढ़ के जोड़ से ऊपर की ओर ऊर्जा खींचने का ध्यान लगाइए ।

अंजनेयासन लाभ - यह आसन रीढ़ की हड्डी को लचीली बनाता है । इसमें मजबूती आती है । प्रत्येक अंग की चर्बी समाप्त होती है । पेट सुडौल होता है । कमर लचीली एवं सुडौल बनती है । हृदय , फेफड़े और छाती सबल होते हैं । महिलाओं के स्तनों में सुडौलता आती है । गर्दन की हड्डी मजबूत होती है । पाचन तंत्र से सम्बन्धित सभी विकार दूर होते हैं । मासिक धर्म पर प्रभाव पड़ता है । गर्भाशय के स्नायु सबल होते हैं । यह आसन प्रत्येक अंग की पेशियों एवं हड्डियों को मजबूत एवं , लचीली बनाता है । । इस आसन में ध्यान लगाने से जीवनी - शक्ति बढ़ती है ।

सावधानियाँ
1 . पूर्व की ओर मुख करके आसन लगाएँ । 
2 . शरीर के अंगों का संचालन धीरे - धीरे करें ।
3 . रीढ़ की हड्डी पर झटका न लगे , इसका ध्यान रखें ।