60 . शीर्षासन

' शीर्ष ' का अर्थ होता है मस्तक । मस्तक के सहारे आसन लगाते हैं , तब उसे शीर्षासन कहते हैं ।




प्रायोगिक विधि - दरी , कम्बल का किसी गद्दे को आठ परत में मोड़ें । इस पर घुटने के बल बैठिए । दोनों हाथों की उंगलियों को फंसा लीजिए आगे की ओर झकिए । कोहनियों को भूमि से सटाकर हाथों को सिर के ठीक नीचे अंजली जैसा बनाकर रखिए । सिर को इस हथेलियों की अंजली पर ऐसे रखिए कि माथा हथेलियों पर पड़े । पैरों के पंजों पर बल लगाकर घुटनों को सीधा कीजिए और नितम्बों को ऊपर उठाइए । अब धीरे - धीरे पंजों से भूमि को ठेलते शरीर के धड़ को सीधा ( ऊपर की ओर ) कीजिए । पैरों को भूमि से उठाकर ऊपर क्षितिज की ओर उठाइए । टाँगों को सीधा ऊपर करके पूर्ण आसन प्राप्त कीजिए । स्मरण रहे , टाँगें एक - दूसरे से सटी हुई एवं लाठी की भाँति सीधी ऊपर की ओर तनी हुई हों । शीर्षासन की सबसे आसान विधि यही है । वैसे यह अनेक विधियों से लगाया जाता है । प्रारम्भ में दीवार के सहारे शीर्षासन लगाने में आसानी होती है । लेकिन इसमें ध्यान रखना चाहिए कि जब शरीर सीधा हो जाए ( अर्थात टाँगें पूर्णतया क्षितिज की ओर हो जाएँ तो दीवार के सहारे को त्यागने का प्रयत्न करना चाहिए । साँस की प्रक्रिया इस आसन में सामान्य रहती है ।

शीर्षासन में ध्यान - शीर्षासन में मुलाधार चक्र से सहस्रार चक्र तक का ध्यान लगाया जाता है । सामान्य व्यक्तियों के लिए इतना ही पर्याप्त है । कि वे रीढ़ की हड्डी की निचली नुकीली हड्डी से मस्तिष्क की ओर बल लगाते हुए ध्यान लगाएँ । इसमें त्राटक बिन्दु से सम्बन्धित ध्यान भी लगाया जाता है। 

लाभ : शीर्षासन को सभी आसनों का राजा कहा जाता है । इससे शरीर की सभी नस - नाड़ियों में रक्त का संचार स्वस्थ ढंग से होने लगता है , जिससे प्रत्येक अंग निरोग , स्वस्थ और सबल होते हैं । बालों का सफेद होना रुकता है ।सफेद बाल काले होते हैं । बालों का झड़ना रुकता है । मस्तिष्क की गर्मी , झनझनाहट , हाथ - पाँव की झनझनी या सूनापन , बवासीर की व्याधि , मधुमेह , स्वप्नदोष आदि इसे आसन को लगाने से दूर होते हैं ।
इस आसन में ध्यान लगाने से ओज , तेज , कान्ति , स्फूर्ति बढ़ती है । बुद्धि विकसित होती है । मन प्रसन्न रहता है । ब्रह्मचर्य की रक्षा के लिए भी यह आसन उपयुक्त समझा जाता है । । स्त्रियों के मासिक धर्म की अनियमितता , बच्चेदानी की गड़बड़ी , चेहरों की झुर्रियों आदि को यह दूर करता है । इस आसन से नेत्रों की शक्ति एवं | ज्योति बढ़ती है ।

सावधानियाँ 
1 . यदि आप आँख , कान , हृदय आदि के रोगों से ग्रस्त हैं , तो यह आसन न लगाएँ । उच्च रक्तचाप के रोगियों के लिए शीर्षासन करना पूर्णतया वर्जित है ।
2 . सिर के नीचे आसन की तह इतनी होनी चाहिए कि वह नर्म रहे ।
3 . सिर के ललाट के ऊपर का भाग भूमि पर टिकाना चाहिए । 
4 . शीर्षासन के समय लंगोट या जाँघिया पहनें लेकिन वे कसे हुए न हों । महिलाओं को कसे हुए अधोवस्त्र का प्रयोग नहीं करना चाहिए । 
5 . शीर्षासन के अभ्यास के लिए सबसे पहले आपको वज्रासन , हलासन , चक्रासन , भजंगासन आदि का पूर्ण अभ्यास कर लेना चाहिए । 
6 . शीर्षासन अधिक से अधिक 15 मिनट करना चाहिए ।