9 . गोरक्षासन

इसे ' गोरखासन ' भी कहते हैं । महागुरु गोरक्षनाथ ( गोरखनाथ ) इसी आसन में साधना करते थे ।



प्रायोगिक विधि- कम्बल पर बैठिए, दोनों टाँगों को घुटनों से मोड़कर दोनों पैरों के तलवों को एडियों से पंजो तक आपस में चिपका लीजिये। दोनों एडियों को धीरे-धीरे मूलाधार से सटाकर कस लीजिये। दोनों हाथों की उँगलियों को आपस में फंसाकर पैरो के पंजो को पकड़िये। इसमें हाथों के अंगूठे दोनों पैरों के अंगूठो के ऊपर होने चाहिए। साँस को खीचिए और कमर को सीधी रखकर घूँटनो को भूमि से सटाये।
                       जितनी देर साँस रोक सके, रोंके। फिर साँस छोड़कर धीरे-धीरे आसन खोलिए।
     आरम्भ में घुटनों को भूमि से सटाने के लिए दोनों घुटनों को हाथोँ से दबाव दिया जाता है और पंजो को पकड़ने की मुद्रा बाद में की जाती है। अभ्यास होने पर घुटने आसानी से भूमि पर लग जाते है।

गोरक्षासन में ध्यान- यह शक्तिसिद्धिया का आसन है । इस आसन में ध्यान लगाने से सम्मोहन - क्षमता, काम - क्षमता एवं शरीर की गुप्त अलौकिक शक्तियों का विकास होता है ।

लाभ - गोरक्षासन के अभ्यास से शुक्र ग्रन्थियों का व्यायाम होता है । इससे पुरुषों के शुक्राणुओं की क्षमता बढ़ती है । वीर्य वृद्धि एवं वीर्य के गाढ़ेपन का लाभ मिलता है । यह आसन स्वप्नदोष एवं शीघ्रपतन के दोष से मुक्त करता है । मूत्र संबंधी दोष एवं आँत और पेट से सम्बन्धित रोग ( बदहजमी , कब्ज , गैस आदि ) दूर होते हैं । कंधे पुष्ट होते हैं । बाजुओं की मछलियाँ कसती हैं । पैरों की नसें और पेशियाँ मजबूत एवं लचीली होती हैं ।
महिलाओं को उपर्युक्त शारीरिक लाभ तो होता ही है , मासिक धर्म , रज एवं गर्भाशय के दोष भी दूर होते हैं । जंघाओं एवं वक्षों की सुडौलता बनती है । बाजू मजबूत होते हैं । कमर के दर्द और ल्यूकोरिया में भी इससे लाभ होता है ।

सावधानियाँ -
1 . उत्तर दिशा की ओर मुँह करके यह आसन न लगाएँ ।
2 . घुटनों को भूमि से सटाने में जोर न लगाएँ । धीरे - धीरे अभ्यास करें ।