31 . हस्तपादांगुष्ठासन

इस आसन में हाथों से पैरों के अंगूठों को पकड़ते हैं , इसलिए इसे ' हस्तपादांगुष्ठासन ' कहते हैं ।




प्रायोगिक विधि - भूमि पर दरी या कम्बल का आसन बिछा लें । सीधे खड़े हो जाएँ । दोनों पांवों को मिलाकर रखिए । घुटने सीधे रहने चाहिएं । अब दाहिने पैर को धीरे - धीरे सीधे ताने हुए ऊपर उठाइए । | इसका अभ्यास धीरे - धीरे होता है । टाँग को उठाकर दाहिने हाथ से उठे हुए दाहिने पैर का | अंगूठा पकड़ लीजिए । जब तक सरलतापूर्वक इस मुद्रा में रह सकते हैं , रहें । इसके पश्चात् अंगूठा छोड़ कर पैर को पूर्व स्थिति में ले आइए । अब बाएँ पैर को उठाइए और बाएँ हाथ से इसके अंगूठे को पकड़िए । | यह आसन प्रारम्भ में एक चक्र , बाद में 10 चक्र तक किया जा सकता है । प्रारम्भ में एक टाँग पर दीवार का सहारा भी ले सकते हैं ।

हस्तपादांगुष्ठासन में ध्यान - यह एक शारीरिक व्यायाम है । इसमें ध्यान नहीं लगाया जाता है ।

लाभ - इस आसन को लगाने से थकान उतरती है । भारीपन और आलस्य दूर होता है । स्फूर्ति , आनन्द व शक्ति का संचार होता है । चेतनानुभूति तीव्र होती है । अजीर्ण , कब्ज आदि पेट के विकार दूर होते हैं । यह आसन कंधों , पैरों , कमर के जोड़ों और पेशियों को मजबूत तथा लचीला बनाता है ।

सावधानी 
1 . पूर्व दिशा की ओर मुँह करके आसन लगाएँ । संध्या में पश्चिम की ओर । । 2 . इस आसन में साँस की गति सामान्य रखी जाती है ।