इस आसन में पद्मासन की मुद्रा बनाकर हाथ एवं पैरों को बाँधते हैं , इसलिए इसे बद्ध - पद्मासन कहते हैं ।
प्रायोगिक विधि - कम्बल या दरी की चार तह लगाएँ । पद्मासन की मुद्रा में बैठ जाएँ । ऐड़ियों को पेट के निचले भाग से सटाएँ । पैर के पंजों को जाँघों से बाहर निकालकर दोनों ओर की कमर से लगाएँ । अब बाईं भुजा को पीठ के पीछे करके बाएँ पाँव का अंगूठा पकड़िए । कमर , पीठ , गर्दन , दृष्टि सीधी रखिए । | इस आसन में ध्यान लगाने पर साँस की गति सामान्य रखिए । | यदि ध्यान न लगाना हो , तो गहरी साँस लेकर कुम्भक कीजिए और जब तक सरलता से साँस रोक सकते हैं , रोकें । अब साँस को छोड़े और फिर कुम्भक लगाएँ । फिर साँस खींचकर कुम्भक लगाएँ । यह प्रक्रिया प्रारम्भ में दो बार , बाद में पाँच बार तक करें ।
बद्ध - पद्मासन में ध्यान - बद्ध - पद्मासन में कुंडलिनी के आठों चक्र का ध्यान लगाया जा सकता है । साधक सर्वप्रथम पद्मासन में त्राटक बिन्दु को एकाग्र करने का प्रयास करें । इसके पश्चात् बद्ध - पद्मासन में कुंडलिनी के प्रथम चक्र से अन्तिम चक्र तक ' ध्यान ' लगाएँ ।
लाभ - व्यायाम के रूप में यह नाड़ी , स्नायु , पेशी आदि को सुन्दर , सशक्त एवं लचीला बनाता है । इस आसन से बल , बुद्धि एवं विवेक का विकास होता है । शरीर सुडौल बनता है । छाती चौड़ी होती है । गर्दन , पीठ , कंधों , घुटनों , कमर आदि का पुराना से पुराना दर्द ठीक हो जाता है । हृदय , जिगर , फेफड़े , तिल्ली आदि को भी यह आसन बल प्रदान करता है । पाचन शक्ति को तेज बनाता है । महिलाओं के लिए यह आसन अत्यन्त लाभप्रद है । गर्भाशय विकार मासिक धर्म सम्बन्धी विकार , ल्यूकोरिया आदि इससे दूर होते हैं । सीना चौड़ा और कमर सडौल होता है । जंघाओं एवं बाहों में सडौलता तथा कसाव उत्पन्न होता है । स्तन पुष्ट और ठोस होते हैं । दूध पर्याप्त मात्रा में उतरता है । शरीर की कान्ति , आँखों की रोशनी आदि में विलक्षण परिवर्तन होता है । इस आसन में ' ध्यान ' लगाने से उपर्युक्त लाभ स्थायी हो जाते हैं । और साधक विलक्षण शक्तियों का स्वामी बन जाता है ।
सावधानियाँ
1 . उत्तर दिशा की ओर मुँह करके आसन न लगाएँ ।
2 सन लाते समय हाथ - पैरों को मोड़ने का अभ्यास आराम से करें । 3 इस आसन का अभ्यास करने से पहले पद्मासन का अभ्यास करें।
प्रायोगिक विधि - कम्बल या दरी की चार तह लगाएँ । पद्मासन की मुद्रा में बैठ जाएँ । ऐड़ियों को पेट के निचले भाग से सटाएँ । पैर के पंजों को जाँघों से बाहर निकालकर दोनों ओर की कमर से लगाएँ । अब बाईं भुजा को पीठ के पीछे करके बाएँ पाँव का अंगूठा पकड़िए । कमर , पीठ , गर्दन , दृष्टि सीधी रखिए । | इस आसन में ध्यान लगाने पर साँस की गति सामान्य रखिए । | यदि ध्यान न लगाना हो , तो गहरी साँस लेकर कुम्भक कीजिए और जब तक सरलता से साँस रोक सकते हैं , रोकें । अब साँस को छोड़े और फिर कुम्भक लगाएँ । फिर साँस खींचकर कुम्भक लगाएँ । यह प्रक्रिया प्रारम्भ में दो बार , बाद में पाँच बार तक करें ।
बद्ध - पद्मासन में ध्यान - बद्ध - पद्मासन में कुंडलिनी के आठों चक्र का ध्यान लगाया जा सकता है । साधक सर्वप्रथम पद्मासन में त्राटक बिन्दु को एकाग्र करने का प्रयास करें । इसके पश्चात् बद्ध - पद्मासन में कुंडलिनी के प्रथम चक्र से अन्तिम चक्र तक ' ध्यान ' लगाएँ ।
लाभ - व्यायाम के रूप में यह नाड़ी , स्नायु , पेशी आदि को सुन्दर , सशक्त एवं लचीला बनाता है । इस आसन से बल , बुद्धि एवं विवेक का विकास होता है । शरीर सुडौल बनता है । छाती चौड़ी होती है । गर्दन , पीठ , कंधों , घुटनों , कमर आदि का पुराना से पुराना दर्द ठीक हो जाता है । हृदय , जिगर , फेफड़े , तिल्ली आदि को भी यह आसन बल प्रदान करता है । पाचन शक्ति को तेज बनाता है । महिलाओं के लिए यह आसन अत्यन्त लाभप्रद है । गर्भाशय विकार मासिक धर्म सम्बन्धी विकार , ल्यूकोरिया आदि इससे दूर होते हैं । सीना चौड़ा और कमर सडौल होता है । जंघाओं एवं बाहों में सडौलता तथा कसाव उत्पन्न होता है । स्तन पुष्ट और ठोस होते हैं । दूध पर्याप्त मात्रा में उतरता है । शरीर की कान्ति , आँखों की रोशनी आदि में विलक्षण परिवर्तन होता है । इस आसन में ' ध्यान ' लगाने से उपर्युक्त लाभ स्थायी हो जाते हैं । और साधक विलक्षण शक्तियों का स्वामी बन जाता है ।
सावधानियाँ
1 . उत्तर दिशा की ओर मुँह करके आसन न लगाएँ ।
2 सन लाते समय हाथ - पैरों को मोड़ने का अभ्यास आराम से करें । 3 इस आसन का अभ्यास करने से पहले पद्मासन का अभ्यास करें।