भ्रामरी प्राणायाम की विधि
– सुखासन या पद्मासन में बैठें। दोनो अंगूठों से कान पूरी तरह बन्द करके, दो उंगलिओं को माथे पर रख कर, छः उंगलियों को दोनो आँखो पर रख दे। लंबी साँस भरने के बाद, सांस को धीरे धीरे कण्ठ से भवरें जैसा (हम्म्म्म) की आवाज करते हुए निकालना है।
भ्रामरी प्राणायाम के लाभ
– सायकीक पेंशेट्स को फायदा मिलता है। वाणी तथा स्वर में मधुरता आती है। ह्रदय रोग के लिए काफी फायदेमंद है। मन की चंचलता दूर होती है एवं मन एकाग्र होता है।
– पेट के विकारों का शमन करती है। उच्च रक्त चाप पर नियंत्रण करता है। थायराइड की समस्या दूर करता है ! कंठ स्थित विशुद्ध चक्र का जागरण होता है ! ब्रम्हानंद की प्राप्ति होती है । मन और मस्तिषक की एकाग्रता बढती है।
– भ्रामरी प्राणायाम करने से साइनस(Sinus) के रोगी को मदद मिलती है। इस प्राणायाम के अभ्यास से मन शांत होता है। और मानसिक तनाव (stress/depression) दूर हो जाता है। भ्रामरी प्राणायाम उच्च रक्तचाप (High Blood Pressure) की बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को भी लाभदायी होता है। भ्रामरी प्राणायाम की सहायता से कुंडलिनी शक्ति(Kundalini Power) जागृत करने में मदद मिलती है। इस प्राणायाम को करने से माइग्रेन/अर्धशीशी (Migraine) के रोगी को भी लाभ होता है।
– भ्रामरी प्राणायाम के नित्य अभ्यास से सोच सकारात्मक बनती है और व्यक्ति की स्मरण शक्ति का विकास होता है। इस प्राणायाम से बुद्धि का भी विकास होता है। भय, अनिंद्रा, चिंता, गुस्सा, और दूसरे अभी प्रकार के मानसिक विकारों को दूर करने के लिए भ्रामरी प्राणायाम अति लाभकारक होता है।
– भ्रामरी प्राणायाम से मस्तिस्क की नसों को आराम मिलता है। और हर प्रकार के रक्त दोष मिटते हैं। भ्रामरी प्राणायाम लंबे समय तक अभ्यास करते रहने से व्यक्ति की आवाज़ मधुर हो जाती है। इसलिए गायन क्षेत्र के लोगों के लिए यह एक उत्तम प्राणायाम अभ्यास है।