51 . चक्रासन

इस आसन में शरीर की मुद्रा चक्र के समान हो जाती है । इसलिए इसे चक्रासन कहा जाता है ।

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प्रायोगिक विधि - भूमि पर आसन बिछाकर चित्त लेट जाइए । दोनों जाँघों को घुटनों से मोड़कर ऐड़ियाँ नितम्बों से सटाइए । दोनों पैरों के बीच
थोड़ा अन्तर होना चाहिए । दोनों बाहों को उठाकर पीछे ले जाइए । बाहों को कोहनियों एवं कलाइयों से मोड़कर हथेलियों को सिर के दोनों बगल में जमाइए । अब कमर को थोड़ा ऊपर करके घुटनों को भूमि की ओर झुकाएँ । ऐड़ियों को नितम्बों के नीचे ले जाएँ । सिर को पीछे की ओर मोड़ते हुए भूमि पर टिका दें । दोनों हाथों एवं पैरों की सहायता से जोर लगाकर शरीर को ऊपर उठाएँ । हाथों एवं पैरों को संतुलित रखते हुए शरीर को मोड़कर चक्र की परिधि के समान गोल बना लें । पेट और छाती खूब तनी रहनी चाहिए । | यह आसन आरम्भ में उतनी ही देर लगाएँ जितनी देर सरलता से लगा सकें । यह मात्र 2 सेकेण्ड का समय होता है । इसके बाद इसके समय को बढ़ाते हुए दो मिनट तक ले जाया जा सकता है । आसन खोलने के लिए आसन लगाने की प्रक्रिया का उल्टा कीजिए ।

चक्रासन में ध्यान - यह आसन गृहस्थों के लिए ध्यान लगाने के उपयुक्त नहीं है ।

लाभ - चक्रासन रीढ़ की हड्डी के लिए सर्वोत्तम व्यायाम है । इससे रीढ़ की हड्डियों में मजबूती एवं लचीलापन आ जाता है । यौवन , शक्ति , कान्ति और बल प्रदान करने वाला यह आसन शरीर के प्रत्येक अंग की अतिरिक्त चर्बी को समाप्त करता है । इससे मस्तिष्क को बल मिलता है । छाती , पेट , पीठ , कमर आदि के विकार दूर होते हैं । हाथों का कम्पन , सिर - दर्द आदि दूर होते हैं । पंजे , पिंडली , घुटने , जाँघे , कमर , पीठ , कलाई , हथेली आदि सबल और सुदृढ़ होते हैं ।

सावधानियाँ 

1 . सिर उत्तर की ओर करके आसन न लगाएँ 
2 . शरीर के अंगों को मोड़ने में सावधानी रखें । इसमें कठिनाई होती है । इस पर अभ्यास के द्वारा सफलता प्राप्त करें ।