आखिर क्यों दिया जाता है मंदिर में चरणामृत ? जानिए क्या है वैज्ञानिक कारण ?





पिछली पोस्ट में हमने आपको ॐ के उच्चारण के फायदे के बारे में बताया था जो कि पूर्णतः विज्ञान पर आधारित थी। ऐसे ही अब हम आपको मंदिर में जाने पर दिए जाने वाले चरणामृत के विज्ञान के बारे में बताना चाहते है। हमने मंदिर में दिए जाने वाले चरणामृत के विज्ञान का विश्लेषण किया है।
                   आपने इस बात को तो बहुत ही बार सुना होगा कि मंदिर जाने से आत्म-शान्ति की अनुभूति होती है और हमारा शरीर भी स्वस्थ रहता है । साथ ही यह भी कहा जाता है कि मंदिर जाने से रोग तो दूर होते ही है और अकालमृत्यु भी नही होती। चरणामृत का अर्थ भगवान के चरणों से प्राप्त अमृत है जिसे भगवान के चरणों को धोने के बाद मिलता है। प्राचीन काल मे स्वर्ण (Golden) और रजत (Silver)  मूर्तिया प्रचलन में थी जिसे आयुर्वेद वेद की दृष्टि से मनुष्य के लिए अत्यंत लाभकारी बताया गया है। भगवान के चरणों को धोने के पश्चात चरणामृत को एक तांबे के पात्र (Port) में रखा जाता है तत्पश्चात उसमे कुछ तुलसी के पत्ते डाल दिये जाते है। अतः अब चरणामृत को भक्तो में बांट दिया जाता हैं।



 वैज्ञानिक महत्व:

1 स्वर्ण और रजत का महत्व

    चरकसंहिता में स्वर्ण और स्वर्ण भस्म को औषधि के समान कहा गया है । स्वर्ण शरीर मे होने वाली metabolic activity को बढ़ा देता है जिससे कि शरीर का विकास सुचारू रुप से होता है वही दूसरी ओर रजत या चांदी को भी metabolic activity के लिए काफी लाभदायक माना जाता है । साथ ही साथ चांदी antibacterial  होती है जो Pathogenic Bacteria ( वो सूक्ष्मजीवी जो शरीर मे बीमारी पैदा करते है ) उन्हें नष्ट कर देता है और हमारी प्रतिरोधक क्षमता (Immunity Power) को बढ़ा देता है। जब भगवान की मूर्ति को पानी से धोया जाता है तो उसमें उस धातु के गुण आ जाते है जिससे उसका महत्व बढ़ जाता है।

 2 तुलसी का महत्व

   तुलसी को हिन्दू संस्कृति में तुलसी को एक महत्वपूर्ण पूर्ण दर्जा प्राप्त है । हिन्दू धार्मिक मान्यताओं में तुलसी एक पूज्यनीय पौधा ही नही अपितु माँ और देवी की तरह पूजा जाता है। धार्मिक महत्व होने के साथ-साथ तुलसी का औषधीय महत्व भी है। तुलसी में अनेक जैव सक्रिय रसायन पाए जाते है , जिनमें ट्रैनिन, सैवोनिन, ग्लाइकोसाइड और एल्केलाइड्स प्रमुख हैं। इन जैव रसायनों (Bio-Chemicals) पाए जाने के कारण आयुर्वेद में तुलसी को एक विशेष औषधीय पौधा माना गया है इसीलिए हिन्दू धर्म मे घर के आंगन में तुलसी के पौधे का होना अतिआवश्यक बताया गया है। तुलसी के नियमित सेवन से सर्दी-झुकाम , कफ , स्वास सम्बंधी समस्याएं एवम कर्क रोग ( Cancer ) जैसे रोग नही होते है। आधुनिक शोधकर्ताओं ने अपनी शोध में पाया कि तुलसी के पत्तो के सेवन से मुँह और ब्रैस्ट कैंसर की समस्या जड़ से खत्म हो जाती है और यह अनेक प्रकार के कर्क रोग (Cancer) को बढ़ने से रोकता हैं।

 3 ताम्बे का महत्व

   जब भी जल को तांबे के पात्र में रखा जाता है तब उसमें तांबे गुण आ जाते है। ताम्बे के पात्र में रखा हुआ जल जीवाणुरोधी  (Antimicrobial) , कर्करोग रोधी ( Anti cancer ) होता है साथ ही यह पाचन तंत्र को सही रखता है एवम पाचन तंत्रे में होने वाली होने वाले infection और बीमारी को भी दूर रखता है।
        अब आपको शतप्रतिशत विश्वास हो गया होगा कि हिन्दू धर्म मे हर एक रीतिरिवाज या धार्मिक क्रिया के पीछे विज्ञान छुपा है। अब आपको मालूम हो होगा कि किस प्रकार चरणामृत के सेवन से हमारा शरीर निरोगी रहता है और अकाल मृत्यु का भय नही रहता इसलिये आप जब भी मंदिर जाए तो चरणामृत लेना ना भूलें।